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गीता प्रेस, गोरखपुर >> श्रीवामन पुराण

श्रीवामन पुराण

गीताप्रेस

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :469
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1191
आईएसबीएन :81-293-0297-7

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प्रस्तुत श्रीवामनपुराण में भगवान विष्णु के एक अवतार वामन अवतार का वर्णन किया गया है....

Shri Vamanpuran -A Hindi Book by Gitapres -वामनपुराण गीताप्रेस

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

नम्र निवेदन

भारतीय संस्कृति के मूलाधाररूप में वेदों के अनन्तर पुराणों का ही सम्मानपूर्ण स्थान है। वेदों में वर्णित अगम रहस्यों तक जन-सामान्य की पहुँच नहीं हो पाती, परंतु भक्तिरस-परिप्लुत पुराणों की मंगलमयी, शोकनिवारिणी, ज्ञानप्रदायिनी दिव्य कथाओं का श्रवण-मनन, पठन-पाठन कर जन-साधारण भी भक्तितत्त्व का अनुपम रहस्य सहज ही हृदयंगम कर लेते हैं। महाभारत में कहा गया है—‘पुराणसंहिताः पुण्याः कथा धर्मार्थसंश्रिताः।’ (आदिपर्व 1/16) अर्थात् पुराणों की पवित्र कथाएं धर्म और अर्थ को देनेवाली हैं। परमात्म-दर्शन अथवा शारीरिक एवं मानसिक आधि-व्याधि से छुटकारा प्राप्त करने के लिये अत्यन्त कल्याणकारी पुराणों का श्रद्धापूर्वक पारायण करना चाहिए।
वामनपुराण मुख्यरूप से भगवान् त्रिविक्रम विष्णु के दिव्य माहात्म्य व्याख्याता है।

 इसमें कुरुक्षेत्र, कुरुजांगल, पृथूदक आदि तीर्थों का विस्तार से विवेचन किया गया है। इस पुराण के अनुसार बलिका यज्ञ कुरुक्षेत्र में ही हुआ था। इसके आदिवक्ता महर्षि पुलस्त्य हैं और आदि प्रश्नकर्ता तथा श्रोता देवर्षि नारद हैं। नारद जी ने व्यास को, व्यासने अपने शिष्य लोमहर्षण सूत को और सूतजी ने नैमिषारण्य में शौनक आदि मुनियों को इस पुराण की कथा सुनायी थी। इसमें भगवान् वामन, नर-नारायण तथा भगवती दुर्गा के उत्तम चरित्र के साथ प्रह्लाद तथा श्रीदामा आदि भक्तों के बड़े रम्य आख्यान हैं। मुख्यतः वैष्णवपुराण होते हुए भी इसमें शैव तथा शाक्तादि  धर्मों की श्रेष्ठता एवं ऐक्यभाव की प्रतिष्ठा की गयी है। इस पुराण के उपक्रम में देवर्षि नारद के द्वारा प्रश्न और उसके उत्तर के रूप में पुलस्त्यजी का वामनावतार का कथन शिवजी का लीला-चरित्र, जीमूतवाहन-आख्यान, ब्रह्माका मस्तक-छेदन तथा कपालमोचन आख्यान का वर्णन है।

तदनन्तर दक्षयज्ञ-विध्वंस, हरिका कालरूप, कामदेव-दहन, अंधक-वध, बलिका आख्यान, लक्ष्मी-चरित्र, प्रेतोपाख्यान आदि का विस्तार से निरूपण किया गया है। इसके अतिरिक्त इसमें प्रह्लाद का नर-नारायण से युद्ध, देवों, असुरों के भिन्न-भिन्न वाहनों का वर्णन, वामन के विविध स्वरूपों तथा निवास-स्थानों का वर्णन, विभिन्न व्रत, स्तोत्र और अन्त में विष्णुभक्ति के उपदेशों के साथ इस पुराण का उपसंहार हुआ है। विभिन्न दृष्टियों से लोककल्याणकारी इस पुराण प्रकाशन ‘कल्याण वर्ष 56, सन् 1982 के ‘विशेषांकरूप में गीताप्रेस द्वारा किया गया था। पाठकों तथा जिज्ञासुओं के द्वारा इसके पुनर्मुद्रण का बार-बार आग्रह किया जा रहा था। तदनुसार गीताप्रेस के द्वारा इसका पुनर्मुद्रण ऑफसेटकी सुन्दर छपाई द्वारा मोटे टाइपों में किया गया है। आशा है, पाठकगण गीताप्रेस से प्रकाशित अन्य पुराणों की भाँति इस पुराण को भी अपना कर इसकी उपयोगी सामग्री से लाभ उठायेंगे।

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